About Delhi
Rashtrapati Bhawan

नई दिल्ली


Rashtrapati Bhawan

वर्ष 1803 में मुगल साम्राज्य का अंत हो गया, स्थानीय शासक प्रतापगंज के निकट ईस्ट इंडिया कंपनी के जनरल लेक द्वारा पराजित हुए। ईस्ट इंडिया कंपनी ने दिल्ली के प्रथम रेजिडेंट को बिखरे मुगल सिंहासन के 'संरक्षक' के रूप में नियुक्त किया। आरंभिक वर्षों में ब्रिटिश शासन और उनका फौज शहर की चारदीवारी के भीतर लाल किले और कश्मीरी गेट के आसपास बस गए। 1857 के युद्ध के बाद शहर में गंभीर परिवर्तन हुए। 1858 में शहर का एक तिहाई से अधिक हिस्सी खंडहर में तब्दील हो गया और ईस्ट इंडिया कंपनी ने यहां का शासन ब्रिटिश राजशाही के अधीन कर दिया।

12 दिसंबर, 1911 को ऐतिहासिक दिल्ली दरबार में, ब्रिटिश साम्राज्य के किंग जॉर्ज-V ने भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किए जाने की अधिकारिक घोषणा कर दी। दिल्ली को भारत की राजधानी घोषित किए जाने के बाद, एक नया शहर स्थापित करने के लिए पूरे जोर-शोर से तैयारियां आरंभ की गईं। इस प्रकार, वैरी स्पेशल सिटी, नई दिल्ली, का उदय हुआ, जो एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर का सपना था। राससीना पहाडियों के आसपास बसे नए शहर में अनेक उल्लेखनीय भवन थे जिनमें राष्ट्रपति भवन (वायसराय हाउस) सचिवालय के नॉर्थ और साउथ ब्लॉक और काउंसिल चैम्बर, जहां अब भारतीय संसद चलती है, 42 मी. ऊंचा स्मारक इंडिया गेट, कनॉट प्लेस और अनेकों सड़कें तथा अन्य भवन हैं।


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वह स्थान जहां आज दिल्ली बसी है, पूर्वकाल में वहां अनेक शहर बसे और उजड़े थे। उनके अवशेष देश के वास्तुकला इतिहास में अनेक महत्वपूर्ण चरणों का बयान करते हैं और दिल्ली के शानदार इतिहास के दृष्टव्य प्रतीक हैं। भारत में ब्रिटिश शासकों की राजधानी रहा नई दिल्ली शहर, विभिन्न शासकों द्वारा निरमित शहरों की श्रंखला का आठवां शहर था। अगस्त, 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राष्ट्रीय सरकार ने किसी अन्य शहर का निर्माण नहीं किया। नई दिल्ली के अनेक किस्से रहे हैं और इसका तेजी से परिवर्तन हुआ है। नई दिल्ली के कारण ही अधिकांश पर्यटकों पर शहर की पहली छाप पड़ती है। नई दिल्ली का अधिकांश निर्माण कार्य 1920-1930 के बीच हा था।

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात्, दिल्ली नए भारत की राजधानी बनी। स्वतंत्रता के बाद से ही इसका महत्व कई गुना बढ़ा है और दिल्ली अब देश की राजनैतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक राजधानी बन चुकी है। शहर की निर्मित विरासत इसके उत्तरवर्ती शहरों में समूह के रूप में देखी जा सकती है। कुतुब मीनार और इसके समीपवर्ती क्षेत्र; तुगलकाबाद, हुमायूं का मकबरा और निज़ामुद्दीन की दरगाह; शेरशाह का किला (पुराना किला), लाल किला और जामा मस्जिद ऐसे स्थान हैं, जिन्हें पर्यटकों को देखे बिना रहना नहीं चाहिए। इनमें कोटला फिरोज शाह, सफदरजंग का मकबरा, हौज खास और लोधी का मकबरा भी देखे बिना नहीं रहा जा सकता।

वास्तव में, सहस्त्रों वर्ष आए और गए, दिल्ली हमेशा की तरह चलती रही। जैसा पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कहा था, "दिल्ली के पत्थर भी धीरे से हमारे कानों में इसके लंबे इतिहास की कहानी कहते हैं और इसकी बहती हवा भी इतिहास के कणों और सुगंध के साथ ही वर्तमान ताज़ा और सुहानी हवाओं से परिपूर्ण है। हमारे सहस्त्रों वर्षों के इतिहास की परंपराएं प्रत्येक कदम पर हमारे चारों ओर मिलती हैं और अनेकानेक पीढ़ियों का कारवां हमारी नज़रों के सामने गुज़रता जाता है।"