About Delhi
Mehrauli

महरौली


Qutab Minar
पृथ्वीराज चौहान की एक नाटकीय पराजय के बाद दिल्ली में 1191 ई. में हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया। यहां अनेक पराजय झेलने वाले मोहम्मद गौरी के दास सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक का कब्जा हो गया। यह दिल्ली सल्तनत का आरंभ था और अगले 600 वर्षों तक इस्लामिक साम्राज्य चलता रहा। महरौली क्षेत्र अतिक्रमणकारियों की गद्दी बना रहा, जो कभी पूर्ववर्ती हिन्दुओं की राजधानी रहा था। 

1206 में मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद,  कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली का पहला सुल्तान बना और एक हिन्दु किले के स्थान पर दिल्ली की पहली मस्जिद कुव्वत-उल-इस्लाम की नींव रखी गई। ऐबक द्वारा कुतुब मीनार (अब विश्व विरासत वाला स्मारक) का निर्माण आरंभ कराया गया जिसे उसके उत्तराधिकारी अल्तमश द्वारा जारी रखा गया। यह दिल्ली का सर्वाधिक प्रमुख प्रतीक बन चुका है। हालांकि, किवदंती है कि राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान ने खगोलीय वेधशाला के रूप में मीनार का निरमाण करवाया। इसकी चोटी से उसकी पुत्री यमुना नदी को देखा करती थी। महरौली के बाहरी क्षेत्र में एक रिज़र्वायर बना है जिसे शम्शी तालाब और जहाज़ महल के नाम से जाना जाता है, जो पैरों के एक धुंधले निशान पर बना है, कहा जाता है कि ये निशान पैगंबर के हैं। 1230 ई. में निर्मित जहाज़ महल सुरमई और लाल पत्थरों से निर्मित एक सुंदर स्मारक है। यहां फूल वालों की सैर का वार्षिक पर्व मनाया जाता है। महरौली के पहाड़ी परिदृश्य में अर्द्धवृत्ताकार दीवार, वेधशाला की मीनारें, अनेक मकबरे और अन्य ऊंचे भवन मौजूद हैं। ये दर्शाते हैं कि सल्तनत काल में महरौली सर्वाधिक सुंदर और संपन्न राजधानी वाला शहर रहा था। नई दिल्ली का निर्माण होने तक इसे अक्सर पुरानी दिल्ली कहा जाता रहा था, इसके बाद शाहजहानाबाद को पुरानी दिल्ली कहा गया।

अल्तमश के उत्तराधिकारी कमज़ोर थे और राज्य के कार्यों को नियंत्रित करने में असफल रहे। अल्तमश ने अपनी रज़िया सुल्तान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। सुल्तान की गद्दी पर किसी महिला के बैठने का दरबारियों और राजशाही द्वारा गंभीर विरोध हुआ, और इसी जलन में उसे मौत के घाट उतार दिया गया। उसका मज़ार तुर्कमान गेट के निकट बुलबुली खाना में है। हालांकि उसके राज्य में राजधानी महरौली तक सीमित नहीं रही, इसका और विस्तार हुआ। सल्तनत के इस दौर में निर्मित स्मारकों ने भारत में इंडो-इस्लामिक वास्तुकला की नींव डाली।