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Firozabad

फिरोज़ाबाद


Firozabad

फिरोज शाह तुगलक अपने पिता मुहम्मद-बिन-तुगलक की तुलना में अधिक स्थापित शासक था। उसने दिल्ली के अगले शहर - फिरोज़ाबाद अथवा आज के फिरोज शाह कोटला का निर्माण करवाया। वह मध्यकाल का एक प्रसिद्ध भवन-निर्माता था, जिसने शहर का पुराने इन्द्रप्रस्थ से विस्तार करके रिज़ तकक बढ़ाया और नई राजधानी सुशोभित की। 1354 ई. में, उसने मेरठ और अंबाला से रेतीले पत्थर से बने दो अशोक स्तंभ मंगवाकर उनमें से एक रिज़ क्षेत्र में तथा दूसरे को कोटला फिरोजशाह में स्थापित करवाया। तीसरी शताब्दी ई.पू. काल के रेतीले पत्थर से बने पॉलिश के गए अशोक स्तंभ 43 मी. ऊंचे और 23 टन भार के हैं, जिन पर ब्राह्मी भाषा में खुदाई की गई है। फिरोज शाह तुगलक ने खिड़की मस्जिद, हौज खास स्थित मकबरे और मदरसे का निर्माण करवाया, जो सुंदर मस्जिद परिसर में स्थित है। कलां मस्जिद, चौंसठ खंबा, बेगमपुर मस्जिद और उसके समीप बिजय मंडल तथा बारा खंबा तुगलक के काल में निर्मित अन्य महत्वपूर्ण भवन हैं। उसने रिज के जंगलों में अनेक सरायों का निर्माण भी करवाया। इन सरायों में भूली भटियारी का महल, पीर गरीब और मालचा महल अभी भी मौजूद हैं।

फिरोजशाह के भवनों की समृद्ध विरासत ने राजधानी के वैभव और प्रसिद्धि में वृद्धि की। इसी समय इसकी समृद्धता, वैभव और सुंदरता ने अतिक्रमणकारियों का खतरा भी उत्पन्न किया। दिसंबर, 1398 में दिल्ली ने दो सप्ताह तक एक खौफ का सामना किया, जब तैमूर लंग ने दिल्ली पर हमला किया था। इससे तुगलक वंश का अचानक ही अंत हो गया।

अगला वंश, लोधी वंश थी, जिसके कुछ मकबरे हैं। इनमें सिंकदर लोधी का मकबरा (1489-1517) उल्लेखनीय है। लोधी गार्डन स्थित बड़े गुम्बद वाली मस्जिद का निर्माण 1484 में हुआ था, जिसके तीन द्वार है और ऊपर तीन गुम्बद बने हैं। लोधी गार्डन में शीश गुम्बद चिकने टाइलों से सजाया गया था, जिस कारण इसका नाम ‘कांच का गुम्बद' पड़ गया।

1526 ई. में दिल्ली के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ा। पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को पराजित किया और मुगल वंश की नींव रखी।

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